Tuesday, July 12, 2011

JAI SHREE RADHEY KRISHNA


मौत और मौत के बाद की दुनिया की जितनी भी कल्पना की जाए उसका सही अनुमान लगाना काफी मुश्किल है। मरने के बाद क्या वाकई कोई यमपुरी है जहां आत्मा को ले जाया जाता है? या फिर आत्मा को खुद ही वहां पहुंचना होता है। उसका रास्ता कैसा है? यमपुरी या यमलोक जैसी कोई दुनिया है? या यह केवल कपोल कल्पना मात्र है। ऐसे कई सवालों का जवाब हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। आइए जानते हैं कि यमलोक के बारे में हमारे धर्म ग्रंथ क्या कहते हैं।



ऐसा है यमपुरी का नजारा



यमपुरी का उल्लेख कई ग्रंथों में मिलता है। जिसमें गरूड़ पुराण, कठोपनिषद, आदि में इसका विस्तृत विवरण मिलता है। मृत्यु के 12 दिन बाद आत्मा यमलोक का सफर शुरू करती है। इन बारह दिनों में वह अपने पुत्रों और रिश्तेदारों द्वारा किए गए पिंड दान के पिंड खाकर शक्ति प्राप्त करती है। बारह दिन बाद सारे उत्तर कार्य खत्म होने पर आत्मा यमलोक के लिए यात्रा को निकलती है। इसे मृत्युलोक यानी पृथ्वी से 86000 योजन दूरी पर माना गया है। एक योजन में करीब 4 किमी की दूरी होती है।



यमलोक के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख भी मिलता है। यह नदी बहुत भयंकर है, यह विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। इसमें मांस का कीचड़ होता है। अपने जीवन में दान न करने वाले मनुष्य मृत्यु के बाद यमपुरी की यात्रा के समय इस नदी में डूबते हैं और बाद में यमदूतों द्वारा निकाले जाते हैं।

यमपुरी का रास्ता बहुत लंबा है, आत्मा सत्रह दिन तक यात्रा करके 18वें दिन यमपुरी पहुंचती है। यमपुरी में भी एक नदी का वर्णन मिलता है, जिसमें स्वच्छ पानी बहता है, कमल के फूल खिले रहते हैं। इस नदी का नाम है पुष्पोदका।



इसी नदी के किनारे एक वटवृछ है जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। तब तक उसे शरीर त्यागे पूरा एक महीना बीत चुका होता है और इसी वटवृक्ष के नीचे बैठकर वह जीव पुत्रों द्वारा किए गए मासिक पिंडदान के पिंड को खाता है। फिर कुछ नगरों को लांघकर यमराज के सामने पहुंची है। वहां से आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार दंड या सम्मान मिलता है।



यम लोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला माना गया है। इसके चार मुख्य द्वार हैं। पूर्व द्वार योगियों, ऋषियों, सिद्धों, यक्षों, गंधर्वों के लिए होता है। यह द्वार हीरे, मोती, नीलम और पुखराज जैसे रत्नों से सजा होता है। यहां गंधर्वों के गीत और अप्सराओं के नृत्य से जीवात्माओं का स्वागत किया जाता है। इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण द्वार है उत्तर द्वार जिसमें विभिन्न रत्न जड़े हैं, यहां वीणा और मृदंग से मंगलगान होता है। यहां दानी, तपी, सत्यवादी, माता,पिता और ब्राह्मणों की सेवा करने वाले लोग आते हैं।



पश्चिम द्वार भी रत्नों से सजा है और यहां भी मंगल गान से जीवों का स्वागत होता है। यहां ऐसे जीवों को प्रवेश मिलता है जिन्होंने तीर्थों में प्राण त्यागे हों या फिर गौ, मित्र, परिवार स्वामी या राष्ट्र की रक्षा में प्राण त्यागे हो। यमपुरी का दक्षिण द्वार सबसे ज्यादा भयानक माना जाता है। यहां हमेशा घोर अंधेरा रहता है। द्वार पर विषैले सांप, बिरूछु, सिंह, भेडि़ए आदि खतरनाक जीव होते हैं जो हर आने वाले को घायल करते हैं। यहां सारे पापियों को प्रवेश मिलता है।



जीव का पुनर्जन्म



हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार जीव को बार-बार जन्म लेना पड़ता है। अपने पिछले जन्म के कर्मों का फल तो वह नर्क की यातनाओं से भोगता है और कुछ उसे अपने अगले जन्म में भोगना पड़ते हैं। इस बारे में ज्योतिष शास्त्र का अपना अलग मत है। गरूड़ पुराण के अनुसार जीव पहला शरीर छोडऩे के बाद पहले अपने कर्मों के अनुसार फल भोगता है। उसे तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं। कई वर्षों तक नारकीय यातनाओं के बाद उसे फिर जन्म दिया जाता है।



वह अपने कर्मों के अनुसार ही स्वर्ग भी पाता है। यहां स्वर्ग की भी कई श्रेणियां मानी गई हैं। जिसमें से मध्यम श्रेणी के स्वर्ग का अधिपति इंद्र को माना गया है। इससे भी ऊंचे स्वर्ग माने गए हैं। अच्छे कर्मों के कारण जीवों को यहां सुख भोगने को मिलता है। सुख भोगने के बाद भी उसकी अवधि समाप्त होने पर उस जीव को दोबारा जन्म लेना पड़ता है।



वहीं ज्योतिष शास्त्र का विचार थोड़ा ज्यादा तर्कसंगत और वैज्ञानिक है। ज्योतिष शास्त्र में माना जाता है कि कोई भी जीव दूसरा जन्म तब लेता है जब उसके पूर्व जन्म के कर्मफल के अनुसार ग्रह दशाएं बनती हैं। तब वह जीव अपनी माता के गर्भ में आता है और फिर वैसे ही मिलते-जुलते ग्रह नक्षत्रों में वह जन्म भी लेता है। इसकी कोई अवधि निश्चित नहीं होती है। इसमें सदियां भी लग सकती हैं।

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